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शुक्रवार, 17 मई 2013

वो राज़ ....



ज़िन्दगी के दर्द को कुछ इस तरह छिपाया जाये 
आँखें हों नम फिर भी मुस्कुराया जाये ...!
वो कहते हैं वो आयें गे घर मेरे 
चाँद तारों से चलो घर को सजाया ..जाये ...!
कुछ कहना था तुम से वो बात ...वो राज़ ...
चलो रात भर चाँद से बतियाया जाये ...!
हटो जाओ ...चलो अब सोने भी दो ...
नींद सा नशा कुछ आँखों से पिलाया जाये। 

3 टिप्‍पणियां:

अरुणा ने कहा…

सुन्दर रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार!

Sufi ने कहा…

Sorry Vandana ji I missed it. @vandana gupta