गज़ल
चलो आज प्यार की तन्हाई पे लिखते हैं
बहुत उदास हैं तेरी बेवफाई पे लिखते हैं।
लूट जारी है कब से मुहब्बत के नाम पर,
झूठ के बाजार में सच्चाई पे लिखते हैं।
तुझे आदत बना कर सीने से लगाया है,
बदलती फितरतों की बेहयाई पे लिखते हैं।
ज़ख्म कितने हों गहरे नुमाइश नहीं करते,
इल्ज़ामों की बारिश में सफाई पे लिखते हैं।
मन्त्र तुम्हारे इश्क का कलमा हमारा,
चलो आज मजहबों की लड़ाई पे लिखते हैं।
समन्दर का मिजाज कुछ इस तरह परखा है,
सर पटकती लहरों की गहराई पे लिखते हैं।
जमीं की तिश्नगी रूह पे तारी है,
जमीनो आसमान की जुदाई पे लिखते हैं।
तेरी बाहों की चाहत में मरना भी भूले,
आगोश न मिली कब्र की स्याही पे लिखते हैं।
डॉ प्रिया सूफ़ी
चलो आज प्यार की तन्हाई पे लिखते हैं
बहुत उदास हैं तेरी बेवफाई पे लिखते हैं।
लूट जारी है कब से मुहब्बत के नाम पर,
झूठ के बाजार में सच्चाई पे लिखते हैं।
तुझे आदत बना कर सीने से लगाया है,
बदलती फितरतों की बेहयाई पे लिखते हैं।
ज़ख्म कितने हों गहरे नुमाइश नहीं करते,
इल्ज़ामों की बारिश में सफाई पे लिखते हैं।
मन्त्र तुम्हारे इश्क का कलमा हमारा,
चलो आज मजहबों की लड़ाई पे लिखते हैं।
समन्दर का मिजाज कुछ इस तरह परखा है,
सर पटकती लहरों की गहराई पे लिखते हैं।
जमीं की तिश्नगी रूह पे तारी है,
जमीनो आसमान की जुदाई पे लिखते हैं।
तेरी बाहों की चाहत में मरना भी भूले,
आगोश न मिली कब्र की स्याही पे लिखते हैं।
डॉ प्रिया सूफ़ी