सुनो नदी अभी जागी है
अभी तो सिराये हैं मैंने
कुछ पूजा के फूल और
कुछ यादें पिछली रातों की
कुछ कलियाँ अपनी बातों सी
कोई कश्ती पिछली बरसातों की
सच! नदी अभी जागी है...!
अभी तो बिखराए हैं मैंने
कुछ अहसास तूफानी लहरों से
कुछ मौन तुम्हारी बातों के...
कुछ पीले पन्ने ख्वाहिशों के
कुछ सूखे फूल किताबों से...
हाँ ! नदी अभी जागी है
अभी तो सुनायी है मैंने
कुछ बातें बीती रातों की
कुछ दौड़ भाग भी दिन भर की
कुछ इठलाती खिलती ढलती सी
इक वेणी मेरे बालों की...
देखो! नदी अभी जागी है
अभी तो जगाई है मैंने
इक आस तेरे आवन की...
कुछ टपकती गिरती बूँदें भी
वो पहले अपने सावन की...
निसिगंधा के फूलों की
कुछ महक वही मनभावन सी...
अब मान भी लो...जान भी लो
नदी अभी जागी है...!