रुलाये कभी
बहलाये कभी
अधरों से तडप कर
लगाये कभी...
तोडे कभी बेदर्दी सा....
अपने ही हाथों
बनाये कभी....
उलझा दे मुझे यूं
धागों सा...
रेशम की तऱ्ह
सुलझाये कभी...
मिटा दे मुझे बस
शब्दों सा...
शमा की तऱ्ह
जलाये कभी...
मिले तो लिपटाये
बेलि सा...
जाये तो पलट न
आये कभी...
बरसे तो बरस जाये
बादल सा....
धरती की तऱ्ह
सुखाये कभी...
बहाये मुझे यूं
धारा सी....
सागर की तऱ्ह
तरसाये कभी....
खुद को उस में
भूल चुकी हूं....
कौन हूं मैं...
बतलाए कभी....!!!