लोग मुझ में तेरी
तस्वीर ढूंढते हैं...
देखो मैं क्या हूँ
मुझ में क्या ढूंढते हैं...?
बरसते बरसते
बांसुरी बन गयी हूँ....
लोग मुझ में तेरी
तासीर ढूंढते हैं...!
देखो मैं क्या हूँ....
मुझ में क्या ढूंढते हैं.....?
होंठों तक आती तो
कुछ और गीत गाती
लोग मेरी रागिनी से
तेरा पता पूछते हैं...
देखो मैं क्या हूँ....
मुझ में क्या ढूंढते हैं.....?
खुद को जलाया
चरण-धूलि बनाया ...
अंगों लगाया..उमंगों सजाया....
लोग मेरी रज में
तेरी रज़ा ढूंढते हैं...
देखो मैं क्या हूँ....
मुझ में क्या ढूंढते हैं.....?
बाँहों में आती
परस गुनगुनाती
तेरा लिखा कोई
मिलन-गीत गाती
लेखनी में मेरी
तेरा लिखा ढूंढते हैं...
देखो मैं क्या हूँ....
मुझ में क्या ढूंढते हैं.....?