हाँ मैं सफ़र में हूँ
भावों के विचारों के
ख्बावों के भंवर में हूँ
हाँ मैं सफ़र में हूँ ...!
सोचा जो हुआ नहीं
देखा जो मिला नहीं
दिया जो दिया नहीं
पाया जो गिला नहीं
प्यास के द्वार पर
सागर के ज्वर में हूँ
हाँ मैं सफ़र में हूँ ...!
आलिंगित हूँ शून्य के
आगोश में अदृश्य के
चुम्बित प्रतिचुम्बित सर्वदा
खला के अधर में हूँ
हाँ मैं सफ़र में हूँ ...!
धूप से लेकर छाँव तक
सर से लेकर पाँव तक
तन की हर ठाँव तक
मैं तेरी नज़र में हूँ
हाँ मैं सफ़र में हूँ ...!
बाहों में तू है प्यार है
रूह का तू सिंगार है
मौन नत उन्मत्त सा
तू ही तो परमात्म द्वार है
तुझ से दूर पास ही
दर्द के दहर में हूँ
हाँ मैं सफ़र में हूँ ...! -प्रिया