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सोमवार, 12 जुलाई 2010

chal kahin aur chalen....



ओ मेरे मन के कमल
चल  कहीं और चलें...
अब तो पंक भी पंक न रहा....
चल कहीं और खिलें !
घुल गयी है इस में 
अहसासों की लाशें 
महकते ज़ज्बात और 
अपनेपन की बिसातें 
अब कहाँ खोजे गी 
तेरी नाल वास्ता...
कहाँ  फैलाएगी जड़ें...
कहाँ  मिलेगा उसे 
रास्ता...?
बेगाने से अपनों में...
तार तार हुए सपनों में...
अनजाने हुए मित्रों में...
ज़हरीले हुए चरित्रों में...
कहाँ मिलेगी 
आस्था...?
चल कहीं और चलें...
किसी पावन पंक की 
तलाश में...
किसी सर किसी नद
किसी  बावड़ी का 
मासूम अंतरतम मथें....!!!
चल कहीं और चलें...
चल कहीं और खिलें...!!!

6 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

चल कहीं और चलें...
किसी पावन पंक की
तलाश में...
किसी सर किसी नद
किसी बावड़ी का
मासूम अंतरतम मथें....!!!

बहुत सुंदर .....!!

अगले महीने होशिआरपुर आ रही हूँ .....!!

Sufi ने कहा…

Harkirat,
Mujhe khushi hogi agar mujh se milogi...!!! My Id drpriyasaini@gmail.com U can send me just one mail...!!! Love

Parul kanani ने कहा…

beautiful words with beautiful feelings !

wizardprince ने कहा…

Priya ji,

Shabdon se man ki baat keh di aapne. Bohot shandar.

Sufi ने कहा…

Thanks Parul...do come again...!

Sufi ने कहा…

Thanks WP...love to see you here.