राधा पुकारे
कान्हा रे कान्हा
सुनो जरा
एकांत तो आना
मन की नदी में
तरंगे जगाना
तन की धूप में
जरा सुस्ताना
बाँहों में भर के
बांसुरी बजाना
गीता बना कर
होंठों लगाना
कहना है तुम से
कुछ नया कुछ पुराना
कान्हा रे कान्हा...
एकांत तो आना...!!!
करते हो क्या तुम
वहां पर अकेले...?
युग- निर्माण
युद्ध के झमेले
कहीं बाहुबल
कहीं छल -रीति
प्रीति पर भारी पड़ी
राजनीति...
अब क्या मैं बोलूँ...
जरा मुस्कुराना...
संध्या समय बस
बांसुरिया बजाना...
कुछ भी नही बस
मन में समाना....
वही प्रेम बेलि
अंसुवन सींच जाना
बहुत कुछ है तुम से
कहना सुनाना
कान्हा रे कान्हा
एकांत तो आना...!!!
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें