कलम ओ कलम
अब तो कुछ बोल
बहुत उदास है मन
कोई खिड़की तो खोल...
बहुत साधारण है
मेरी सोच की दुनिया
छोटी बहुत है
मेरे शब्दों की दुनिया
तू ही अब कुछ नया बोल...!
मेरे कहे वो सुनता कहाँ है...?
सौ बार पुकारूं बोला कहाँ है...???
धरती का मालिक वो
अम्बर का स्वामी
तू ही बता उसे
मेरी बेकली की कहानी...!
हाँ प्रतीक्षा है मात्र प्रतीक्षा
देर तक दूर तक
सिर्फ प्रतीक्षा
एक दिन तो तडपे गी
उसकी मोहब्बत
मेरे विश्वास की देख
नादानी...!
12 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
Thanks so much Urmi...Love to see you again...
सुनेगा न,जरूर सुनेगा.मथानि बहुत देर तक चलानि पड़ती है,जब पोर पोर थकने लगता है तब कहीं जा कर माखन ऊपर आता है.
तड़फ़ शब्दो को चीर बाहर आ रहि है.
नमिता
बहुत सुन्दर रचना
नमिता दी..
सच है भीतर कुछ तो है...जो तड़प तड़प कर उसे पुकारता है...देखो उत्तर कब मिलता है...
शुक्रिया...
Dhanyavaad Rahul ji...
ek dinto tadpegi ..............
aapki kavita ki ye panktiyan man ko chhuti hai .
sunder bhavon se kavita ke liye badhai
rachana
कलम ने आखिर बोल ही दिया प्रिया जी .....::))
Dear Rachana...
Mann ko chhune ki hi to Tadap hai...aapke mann main jaghah mili Dhanyavaad !
हरकीरत जी...
कलम तो कब से तड़प रही थी बोलने के लिए...बस मैं ही कुछ ढीली हूँ...आपके आने का बहुत शुक्रिया! मैं अपने पंजाबी ब्लॉग पर भी आपका इंतज़ार करूंगी...! पता है http://sandalipaidan.blogspot.in/
प्रिया
वाह बहुत खूब , लाजवाब , शानदार, बेहतरीन……….
राजेंदर जी...
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत ...धन्यवाद !
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