द्वार द्वार भटक गई
तेरी एक झलक को
तरस गई तरस गई
खाली जाम पिए हुए
तेरा नाम लिए हुए
कहे बिना बहक गई
सुने बिना लहक गई
चाँद आया बेवजह
तन मन सजाया बेवजह
बाहों में बिखर गई
अधरों से लिपट गई
कतरा कतरा टूटी थी
बूंदों में सिमट गई
तूने देखा कुछ इस तरह
तेरी हो निपट गई...!
19 टिप्पणियां:
बावरी सी अभिव्यक्ति
रश्मिप्रभा जी,
मोहब्बत बावरी न हो तो मोहब्बत कैसी ??? धन्यवाद...आभार.....
khoobsurat ehsaas
Thanks Surender...
BEAUTIFUL LINES WITH DEEP EXPRESSION
BEAUTIFUL LINES
Ramakant ji,
bahut bahut Dhanyavaad! Mere blog main aapka swaagat hai....
सुन्दर सुन्दर सी भावपूर्ण प्रस्तुति.
अभिव्यक्ति का यह अंदाज अच्छा लगा.
पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
अति प्रिय लगी आपकी प्रस्तुति,प्रिया जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
Rakesh ji,
Aapka hardik Swagat..! Dhanyavaad aane ka bhi aur sraahne ka bhi...
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
Dhanyavaad Rahul ji...
सचमुच बावरी सी अभिव्यक्ति....मोहब्ब्त बना ही देती है दीवाना.....
सुन्दर!!!
बहुत अच्छा लगा हमे.
बहुत अच्छा लगा हमे.
kavitaon main ik sampooran istree batiati hai.
Dhanyavaad Anuji Suswagatam !!!
Dasrath ji der se uttar dene ke liye Maafi chahti hoon..Thanks so much! Swagat hai aapka
Aap hi bnaaye huyee Ganga hai Prabhu...Ahubhagya aapke Shabad mile...Charan Naman
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.....
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